क्राइम
कोरोना जब पीक पर था तब साइबर क्रिमिनल ने रोजाना 27 लोगों को बनाया शिकार, जानें दिल्ली में कैसे हुई ठगी
नई दिल्ली : कोरोना महामारी की दूसरी लहर में साइबर क्रिमिनलों ने भी लोगों की मजबूरी की जमकर फायदा उठाया। देशभर में ऑक्सीजन, अस्पताल में बेड, ऑक्सीजन सिलिंडर या ई-पास, ऑक्सीजन कंस्ट्रेटर या फिर रेडमीसिवियर ल नंबर भी तमाम सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर डालते थे और साइबर क्रिमिनल इनसे इमोशनल बात करके ठगी का शिकार बना लेते थे। दिल्ली पुलिस ने कोरोना महामारी के दौरान 25 अप्रैल से 24 मई के बीच साइबर क्राइम के मामले की एनालिसिस की है। इस दौरान कुल 796 शिकायतें मिलीं। यानी औसतन रोजाना 27 साइबर क्राइम के मामले हुए। इनमें भी सबसे ज्यादा शिकायतें 29 अप्रैल से 7 मई के बीच मिलीं। मतलब, कोरोना जब पूरी तरह से पीक पर था तो साइबर क्रिमिनल भी सबसे ज्यादा ठगी को अंजाम दिए। हालांकि, अब जब अस्पताल में बेड, ऑक्सीजन और अन्य जरूरी सामान की उपलब्धता सामान्य हो गई तो इससे जुड़े साइबर क्राइम के मामले में भी कमी आई है।
दिल्ली पुलिस ने भी दिखाई तेजी, 366 आरोपी किए गिरफ्तार
कोरोना पीक के दौरान दिल्ली पुलिस ने मदद के नाम पर लोगों को ठगने वालों की पहचान करके उनकी धरपकड़ करने में तेजी दिखाई। उसी का नतीजा है कि 13 अप्रैल से 29 मई के बीच दिल्ली पुलिस ने कोविड से संबंधित अपराधों के कुल 646 केस दर्ज करके इन मामलों में कुल 366 आरोपियों को गिरफ्तार किया और उनके पास से बड़ी मात्रा में कोविड के उपचार के काम आने वाली दवाइयां, इंजैक्शन व अन्य उपकरण व साजोसामान भी बरामद किया। इस दौरान पुलिस ने जरूरी चीजों की जमाखोरी के 108 और अलग-अलग तरीकों से लोगों के साथ की गई चीटिंग के 538 केस दर्ज किए।
सोशल मीडिया पर इमरजेंसी मैसेज देखते ही क्रिमिनल होते थे एक्टिव
दिल्ली पुलिस कमिश्नर एस.एन. श्रीवास्तव ने मीडिया को जानकारी देते हुए बताया कि अप्रैल में कोरोना की दूसरी लहर के जोर पकड़ते ही ऑक्सीजन सिलिंडर, ऑक्सीजन कंसंट्रेटर, फैबीफ्लू टेबलेट्स, रेमिडीसिवियर इंजैक्शन व अन्य दवाओं और उपकरणों की मांग जोर पकड़ने लगी थी। इसके अलावा मरीजों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए एंबुलेंस की डिमांड भी कई गुना बढ़ गई थी। जैसे-जैसे स्थिति गंभीर होती गई, लोगों ने मदद के लिए सोशल मीडिया पर एसओएस (SOS) मैसेज भेजने शुरू कर दिए। खासतौर पर ट्विटर, फेसबुक और वॉट्सऐप ग्रुप पर मदद के लिए इस तरह के मैसेज खूब डाले। इस दौरान बड़ी संख्या में मदद करने वालों और मदद मांगने वालों ने अपने फोन नंबर्स भी सोशल मीडिया में शेयर किए। इससे लोगों को मदद भी मिली लेकिन साइबर क्रिमिनल ने भी इसका फायदा उठाया।
ऐसे मैसेज का पता लगाकर ठगी करने वाले क्रिमिनल एक्टिव हो गए। कोरोना की दूसरी लहर का फायदा उठाकर फर्जीवाड़ा करने के लिए एक पूरा ताना-बाना बुना गया। लोगों की मदद करने से लेकर मदद मांगने तक का बहाना बनाकर बनाकर फर्जीवाड़ा किया गया। सोशल मीडिया पर नंबरों के शेयर होने से फर्जीवाड़ा करने वालों का काम और भी आसान हो गया। जरूरतमंद लोगों को दवाइयां, इंजैक्शन, उपकरण आदि सप्लाई करने के नाम पर पैसे ऐंठे गए। कइयों से पैसे ले लिए गए, लेकिन सामान सप्लाई ही नहीं किया गया या खराब सामान पकड़ा दिया गया। यहां तक कि नकली दवाएं और इंजैक्शन भी सप्लाई किए गए।
ट्रेंड एनालिसिस के जरिए दिल्ली पुलिस ने लिया एक्शन
सोशल मीडिया पर जिस ट्रेंड के जरिए क्रिमिनल ने ठगी को अंजाम दिया उसी ट्रेंड की एनालिसिस कर दिल्ली पुलिस ने भी एक्शन प्लान तैयार किया। पुलिस की अलग-अलग टीमों ने ट्रेंड एनालिसिस किया, तो पता चला कि अप्रैल माह के अंत से इसकी शुरुआत हुई। पुलिस ने बताया कि 25 और 26 अप्रैल को इंटरस्टेट मूवमेंट के लिए ई-पास बनाने की डिमांड ज्यादा देखी गई, तो वहीं 27 अप्रैल से 9 मई के बीच प्लाज्मा, टेस्टिंग, वैक्सीनेशन आदि की डिमांड तेज रही, जिसका फायदा जालसाजों ने उठाया।
इस बीच जरूरी सामान की जमाखोरी, ब्लैक मार्केटिंग, ओवर चार्जिंग की भी ढेरों शिकायतें सामने आने लगीं। इसे देखते हुए दिल्ली पुलिस की अलग-अलग यूनिट्स के मेंबर्स की एक संयुक्त टीम का गठन किया, जिसकी अगुवाई साइबर क्राइम यूनिट को सौंपी गई। सोशल मीडिया व अन्य माध्यमों के जरिए अवेयरनेस कैंपेन भी शुरू किया गया। शिकायतें दर्ज कराने के लिए ई-मेल आईडी भी जारी किए गए। शिकायतों पर तुरंत केस दर्ज करके उनकी तेजी से जांच की गई। इस दौरान 25 अप्रैल से 24 मई के बीच कुल 796 शिकायतें मिलीं। सबसे ज्यादा शिकायतें 29 अप्रैल से 7 मई के बीच मिलीं। जिसके बाद पुलिस ने पैसे जमा कराए बैंक अकाउंट की डिटेल निकालकर इन गिरोहों पर नकेल कसी गई।