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क्राइम

साइबर ठगों के 500 से ज्यादा बैंक खाते जांच में निकले फर्जी,दूसरों की आईडी पर खुलवाए गए खातों में जमा की जा रही रकम

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साइबर ठगों के 500 से ज्यादा बैंक खाते जांच में निकले फर्जी,दूसरों की आईडी पर खुलवाए गए खातों में जमा की जा रही रकम

साइबर ठग ऑनलाइन धोखाधड़ी के लिए फर्जी आइडी पर बैंक खाते खुलवाकर उनका इस्तेमाल कर रहे हैं। पिछले दो वर्ष में करीब दो हजार मामलों की जांच में 500 से ज्यादा खाते फर्जी आईडी पर खुले पाए गए। इन खातों की केवाईसी (अपने उपभोक्ता को जानिए) में नाम किसी का और फोटो व नंबर किसी अन्य का लिखा होता है। जिन मोबाइल नंबरों का इस्तेमाल हो रहा है, वह भी फर्जी आईडी पर लिए जाते हैं। हाल ही में कानपुर के साइबर क्राइम थाने में दर्ज मुकदमे में रिटायर्ड दारोगा के खाते से साइबर ठगों ने करीब 15 लाख रुपये निकाल लिए। जिन खातों में रकम ट्रांसफर हुई, जांच में वे खाते फर्जी आइडी पर खुले पाए गए।

पिछले माह क्राइम ब्रांच ने लखनऊ से चार शातिरों को गिरफ्तार कर जेल भेजा था, जो बीमा प्रीमियम जमा करने का झांसा देकर खातों में रकम जमा कराते थे। इसके लिए गिरोह ने गरीब व असहायों के आधार कार्ड व अन्य आइडी की मदद से फर्जी खाते खुलवाए थे। कानपुर की दो महिलाओं को ठगने के मामले नाइजीरियन ठग ओकुवारिमा मोसिस व साथी शिलांग, मेघालय निवासी अलीशा उर्फ मैंडी ने भी फर्जी खाते खुलवाकर रकम जमा कराई थी। साइबर क्राइम थाना प्रभारी जगदीश यादव के मुताबिक, साइबर अपराधी दूसरों की आइडी में छेड़छाड़ कर फोन नंबर और खाते नंबर हासिल करते हैं। वे ठगी के शिकारों के खाते से रकम निकाल फर्जी खातों में ट्रांसफर कर रहे हैं।

इस तरह खुलवा रहे फर्जी खाते ठग कभी किसी फोटोकॉपी की दुकान से लोगों के दस्तावेजों की छायाप्रति हासिल कर उसे एडिट करके फर्जी दस्तावेज तैयार करते हैं तो कभी गरीब असहायों को लालच देकर उनकी आइडी पर खाते खुलवा लेते हैं। कई बैंक आनलाइन भी खाते खोल रहे हैं। ऐसे में ठगों का काम और आसान हो जा रहा है। स्टांप एवं पंजीयन विभाग की वेबसाइट पर अपलोड की गई संपत्तियों की रजिस्ट्री से आधार व पैन कार्ड की प्रति हासिल करके भी फर्जी खाते खुलवाने के मामले सामने आ चुके हैं।

ई-वालेट भी हथियार
साइबर अपराधी फर्जी आइडी पर सिमकार्ड लेकर यूपीआइ ई-वालेट भी बनाते हैं और पीड़ितों के खातों से इन खातों में रकम जमा करके निकाल लेते हैं। इन खातों से आनलाइन खरीददारी करके तमाम उत्पाद भी अपने ठिकानों पर मंगाते हैं। नंबरों पर आधारित इन ई-वालेट खातों का भौतिक सत्यापन न होने से लगातार केस बढ़ते जा रहे हैं।

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