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Cyber slavery:विदेशों में साइबर गुलामी का शिकार हो रहे भारतीय; विजिटर वीजा पर 73 हजार लोग इन देशों में गए, लगभग 30 हजार नहीं लौटे

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NIA Uncovers Human Trafficking Horror: Indian Techies Trapped in Laos Scam

दक्षिण-पूर्व एशिया (Southeast Asia) में हजारों भारतीय को साइबर गुलामी (Cyber slavery) में फंसा लिया है, जहां उन्हें भारत में लोगों को टारगेट करने वाले ऑनलाइन स्कैमर्स के लिए काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। उनसे लाखों-करोड़ों ठगे जाते हैं। अब भारत सरकार इस नए साइबर अपराध पर नकेल कस रही है।

देश के दूरसंचार मंत्रालय द्वारा उठाए गए कदमों में 21.7 मिलियन मोबाइल फोन कनेक्शन को काटना और लगभग 226,000 हैंडसेट्स को ब्लॉक करना शामिल है। एक इंटर मिनिस्टर पैनल गठित किया गया है। इसमें गृह मंत्रालय, आव्रजन ब्यूरो (Immigration Bureau), वित्तीय खुफिया इकाई (Financial Intelligence Unit), भारतीय रिजर्व बैंक, सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) शामिल हैं।

दूरसंचार ऑपरेटर से कहा गया है कि वे आने वाली अंतरराष्ट्रीय “स्पूफ्ड कॉल्स” को ब्लॉक करें। इनमें भारतीय मोबाइल नंबर दिखाए जाते हैं। ऐसी ड्रॉप्ड कॉल्स आने वाली इंटरनेशनल कॉल्स का 35 प्रतिशत हिस्सा होती हैं।

एक रिपोर्ट में कहा गया कि दूरसंचार कंपनियों को हांगकांग, कंबोडिया, लाओस, फिलीपींस और म्यांमार में रोमिंग सुविधाओं का उपयोग करने वाले भारतीय मोबाइल नंबरों का डेटा देने के लिए भी कहा गया है।

इसने एक सूत्र के हवाले से कहा कि इस साल अप्रैल-जून में दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र में 600,000 ऐसे फोन रोमिंग में थे। इस बीच, सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि जनवरी 2022 से मई 2024 तक विजिटर वीजा पर कंबोडिया, थाईलैंड, म्यांमार और वियतनाम की यात्रा करने वाले 73,138 भारतीयों में से 29,466 अभी तक वापस नहीं लौटे हैं।

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इंटर मिनिस्टर पैनल ने भारत में स्थानीय सरकारों से उनकी पृष्ठभूमि और ठिकाने के बारे में गहन वैरिफाई करने को कहा है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वे मुख्य रूप से पंजाब (3,667), महाराष्ट्र (3,233) और तमिलनाडु (3,124) राज्यों से हैं। ‘गायब’ हुए लोगों में से लगभग 70 प्रतिशत भारत से थाईलैंड गए थे।

पहले की भारतीय मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण-पूर्व एशिया में साइबर गुलामी के मुख्य केंद्र कंबोडिया में कम से कम 5,000 भारतीय फंस गए थे। उनमें से कई लोग यह सोचकर वहां गए थे कि वे वैध फर्म में जॉइन हो रहे हैं, लेकिन उन्हें विभिन्न साइबर अपराधों में शामिल होने के लिए मजबूर किया गया।

इनमें से कई अपराध अपने देश में भारतीयों को निशाना बनाकर किए जाते हैं, जिनमें अक्सर 5 अरब रुपये से अधिक की रकम वसूली जाती है। भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र के आंकड़ों के अनुसार, भारतीयों को निशाना बनाकर किए जाने वाले 45 प्रतिशत साइबर अपराध दक्षिण-पूर्व एशिया में होते हैं।

जनवरी 2023 से अब तक राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल पर लगभग 100,000 शिकायतें दर्ज की गई हैं। इस साल कई रिपोर्ट्स में भारतीयों द्वारा दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में फंसने, उनकी इच्छा के विरुद्ध पकड़े जाने या सरकारी एजेंसियों द्वारा बचाए जाने की शिकायत की गई है।

मई में सरकार ने बताया कि पिछले पांच महीनों में कंबोडिया में साइबर गुलामों के रूप में काम करने वाले 360 भारतीयों को वापस लाया गया। अगस्त में, यह बताया गया कि दक्षिणी राज्य तमिलनाडु से 1,000 से अधिक लोग जो कंबोडिया, थाईलैंड, वियतनाम और लाओस जैसे दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में गए थे, संभवतः साइबर गुलामों के रूप में काम कर रहे थे।

अन्य मूल राज्यों में आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार और दिल्ली शामिल हैं। उसी महीने, लाओस में डेटिंग ऐप घोटाले चलाने के लिए मजबूर किए गए 47 भारतीयों को बचाया गया। अब तक उनमें से सैकड़ों को भारतीय सरकार या अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और गैर सरकारी संगठनों द्वारा बचाया गया है।

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साइबरपीस फाउंडेशन के अनुसार, साइबर गुलामी एक तरीके से गुलामी का आधुनिक रूप है, जो ऑनलाइन धोखाधड़ी से शुरू होता है और मानव तस्करी का कारण बन जाता। यह कई अलग-अलग रूप ले सकता है, जैसे साइबर अपराध में जबरदस्ती शामिल होना, ऑनलाइन धोखाधड़ी में जबरन रोजगार, गिग इकॉनमी में शोषण या अनैच्छिक गुलामी।

भारतीयों को उच्च वेतन वाली नौकरियों के लिए ‘चुना’ गया था, लेकिन उन्हें गंभीर परिस्थितियों में दिन में 16 घंटे काम करने के लिए मजबूर किया गया। उन्हें जिस अवैध ऑनलाइन काम करने के लिए मजबूर किया जाता है, उसमें मनी लॉन्ड्रिंग, क्रिप्टोकरेंसी धोखाधड़ी और डेटिंग/लव स्कैम शामिल हैं।

अपराध का तरीका

भारतीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, विभिन्न राज्यों के 20 से 30 वर्ष की आयु के भारतीयों को साइबर अपराधी डेटा एंट्री जॉब के लिए लुभाते हैं। एक बार जब वे कंबोडिया और लाओस जैसे देशों में उतरते हैं, तो ये कंपनियां उनके पासपोर्ट छीन लेती हैं और फिर उन्हें साइबर धोखाधड़ी करने के लिए मजबूर करती हैं, मुख्य रूप से अपने देश में भारतीयों को निशाना बनाती हैं।

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