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क्राइम

फर्जी फर्मो के नाम पर सीसी अकाउंट खोलकर हो रही साइबर ठगी,बैंकों के पास सत्यापन की व्यवस्था नहीं

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फर्जी फर्मो के नाम पर सीसी अकाउंट खोलकर हो रही साइबर ठगी,बैंकों के पास सत्यापन की व्यवस्था नहीं

कानपुर के स्वरूप नगर में स्थित एक कंपनी के अधिकारी का ईमेल आइडी हैक कर साइबर ठगों ने बैंक को मेल कर ढाई करोड़ रुपये की रकम विभिन्न राज्यों में खुले खातों में ट्रांसफर करवा दी। जांच में पता चला कि जिन खातों में रकम ट्रांसफर हुई, अधिकांश फर्जी थे। फर्जी फर्मो के नाम पर खोले गए कैश क्रेडिट (सीसी) अकाउंट साइबर ठगी का सबसे बड़ा हथियार है।

इससे पहले फेसबुक पर दोस्ती गांठ युवतियों को महंगे गिफ्ट भेजने का झांसा देकर और कस्टम अधिकारी बनकर फोन पर विदेश से आ रहे गिफ्ट पर टैक्स बताकर रकम वसूलने का खेल भी ऐसा चला। फर्जी खाते में रकम ली गई। पुलिस जांच में पता चला कि साइबर ठग बैंकों के लचर तंत्र का फायदा उठा बड़ी आसानी से खाते खुलवा लेते हैं। फर्जी नामों से सेविंग खाते खोलकर या बैंक खाते किराए पर लेकर भी ठगी का पैसा खपाया जा रहा है।

स्वरूप नगर की कंपनी से ठगी की जांच में नाइजीरियन ठगों की भूमिका सामने आई है। पुलिस ने अब तक 13 संदिग्ध अकाउंट तलाशे हैं, छह का सत्यापन कराया तो फर्जी मिले। विवेचक सुधाकर ¨सह ने बताया कि सभी सीसी अकाउंट हैं जो फर्जी तरीके से खोले गए थे। इसमें बैंक की लापरवाही कम, सिस्टम की नाकामी अधिक है।

कानपुर से गिरफ्तार गिरोह के सदस्य मेहंदी हसन ने भी कुछ हरपाल बनकर फर्जी फर्म के नाम से बैंक अकाउंट खोला था। अगर खाते से कैश पैसा निकाला गया तो जांच की चेन यहीं से टूट जाती है।

तीन बड़ी खामियां
फर्म के नाम पर बैंक में सीसी अकाउंट खोलते समय केवल फर्म का पंजीकरण प्रमाणपत्र और फर्म स्वामी का आधार कार्ड लगता है। बैंकों के पास ऐसा कोई तंत्र मौजूद नहीं है कि दोनों का सत्यापन करा सके। आधार नंबर के आधार पर केवल यह पता चल सकता है कि नंबर सक्रिय है या नहीं। ठग फर्जी आधार कार्ड बनवाते हैं, जिसमें किसी दूसरे व्यक्ति का सक्रिय नंबर प्रयोग करते हैं। – सीसी अकाउंट खोलते समय बैंक फर्म को लेकर जांच नहीं कराता है। लिमिट बढ़ानी होती है, तब बैंक जांच करता है। ठग पहले ही दौर में पैसा लेकर फुर्र हो जाते हैं।

एक खाते से दूसरे खाते में पैसा ट्रांसफर करते समय बैंक केवल अकाउंट नंबर देखता है। ठग कई बार आनलाइन पेमेंट में अपने फर्जी अकाउंट का नंबर देते हैं और नाम सही देते हैं। पैसा देने वाला नाम देख पैसा देता है, बैंक अकाउंट नंबर व नाम का मिलान नहीं कराते हैं। बैंक मौजूदा गाइड लाइन के अनुसार काम कर रहे हैं। कई बार आम उपभोक्ताओं के लालच की वजह से साइबर ठगी होती है।

अग्रणी जिला प्रबंधक एके वर्मा के अनुसार बैंकों के पास खाता खोलते समय सत्यापन की कोई व्यवस्था नहीं है। पैसा ट्रांसफर करते समय आइएफसी कोड व अकाउंट नंबर देखा जाता है। नाम का विवरण नहीं पता चलता है।

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